अलवर. 1893 के शिकागो सम्मेलन में विश्व स्तर के सामने रखने वाले स्वामी विवेकानंद (Viveknand ) अलवर के प्रेम और भाईचारे को शिकागो में भी नहीं भूले थे। विवेकानंद तीन बार अलवर आए। यहां के लोगों को प्रेरणादायी संदेश दिया। उनका लिखा एक पत्र तो अशोका टॉकीज के समीप खटीक पाड़ी निवासी राजाराम विजयवर्गीय के पास महफूज रहा।
अलवर में स्वामीजी पहली बार 1891 में संन्यासी के रूप में आए। उन्हें शंभूनाथ, डॉ. गुरुशरण, एक मौलवी साहब ने बुलवाया था। उनके प्रवचनों की बात महाराज मंगलसिंह तक पहुंची। उन्होंने विवेकानंद को महल में बुलाया। दरबार में मूर्ति पूजा निराकार रूप में पूजा को लेकर बहस हुई तो स्वामी विवेकानंद ने अपने तर्क से साबित किया कि साकार रूप में पूजा करने का कारण क्या है।
इसके बाद वे 1893 1897 में भी आए। वे नंगली सर्किल स्थित सीएमएचओ कार्यालय के रियासतकालीन भवन के एक कमरे में ठहरे। कंपनी बाग में उनके प्रवचन हुए। मंगलसर रेजिमेंट के हैड क्लर्क गोविंद सहाय के पास खटीक पाड़ी स्थित निवास पर ठहरे। जहां आज विवेकानंद चौक है वहां प्रवचन हुए। 1897 में अंतिम बार अलवर आए। सरिस्का से पैदल चलकर वे खेतड़ी पहुंचे
- स्वामी की आदर्श वाक्य चलते रहो चलते रहो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करों। विद्यार्थियों को सफलता पाने तक परिश्रम का संदेश देता है।
- समय प्रबंधन स्वामी जी के नियम में शामिल था। वैसा प्रबंध आज के युवा करें तो नई जीवन की शैली में भी वे तरक्की कर सकते हैं।
- प्रेम भाई चारे की भावना का महत्व स्वामी जी ने सिखाया। शिकागो के सम्मेलन ने सभी संतों ने जहां श्रोताओं को लेडीज एंड जेंटिलमैन यानि महिलाओं और सज्जनों कहा। वहीं विवेकानंद ने विश्व के लोगों को भाइयों और बहनों कहा तो लोगों ने उनकी बात का पूरा सुना।
- उपलब्ध साधनों का उपयोग करने की कला।
- कार्य को एकाग्र होकर करने की जरूरत।
- नैतिक और चारित्रिक पक्ष पर कायम रहना।