अलवर. शहर के अपना घर शालीमार के श्री राम मंदिर में चल रहे दुर्लभ सत्संग (Sermon) के अंतिम सातवें दिन स्वामी विजयानंद गिरी महाराज ने कहा कि भगवान के शरणागत होने में ही मनुष्य का जीवन सफल, सार्थक और कल्याणकारी हो सकता है। प्रत्येक जीव किसी ना किसी के शरणागत होता है। जीव माया के अधीन हो गया है ये सब आश्रय सांसारिक और अस्थाई है, सच्चा और स्थाई आश्रय तो भगवान का है।
कृष्ण जी ने अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश में स्पष्ट कहा कि तुम मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हे सब पापों से मुक्त कर दूंगा। हम संसार के नहीं, भगवान के हैं। बस इसे मानना ही है। शरणागति भाव है, जबकि क्रिया में अहंकार होता है, अभिमान आते ही भगवान जीव से दूर हो जाते हैं।
यदि मानव को अपना कल्याण करना है तो वह भगवान की भक्ति में अपनी पूरी शक्ति लगा दे। जो जिसकी शरणागत हो जाता है फिर चिंता उसके मालिक को हो जाती है। भगवान का चिंतन होना चाहिए, भगवान की मर्जी में ही अपनी मर्जी को मिला देना ही शरणागत होना है।