भगवान धन्वंतरि द्वारा प्रदत्त आयुर्वेद अपनाने के संकल्प से ही धनतेरस के दिन की महत्ता
Aayurved : भगवान धन्वंतरि का अवतरण दिवस 29 अक्टूबर को है। भगवान धन्वंतरि धन-धान्य एवं आरोग्य के देवता कहे जाते है। एक बात यहां स्पष्ट होनी चाहिए कि आरोग्य से धन-धान्य होता है, धन-धान्य से आरोग्य नहीं। इसलिए आज के दिन की विशेष महत्ता हम सभी के लिए मुख्य रूप से आरोग्य (आयुर्वेद) दिवस के रूप में ही होनी चाहिए। कहा भी जाता है -पहला सुख निरोगी काया, अर्थात संसार का सबसे बड़ा सुख आरोग्य ही है और जब हम आरोग्य को प्राप्त करते हुए स्वस्थ- शतायु जीवन जीते हैं, तो निश्चित ही हमारे जीवन मे धन-धान्य सहित जीवन के पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के लक्ष्य को प्राप्त करते है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस : 2016 से हर साल मना रहे, थीम “वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार”
आयुर्वेद दिवस 2016 से हर साल धन्वंतरि जयंती के दिन मनाया जाता है। इस साल यह 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस वर्ष आयुर्वेद दिवस की थीम “वैश्विक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद नवाचार” आयुष मंत्रालय द्वारा घोषित किया गया है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धनतेरस के दिन मनाया जाता है।
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और आरोग्य का देवता माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन के समय निकले 14 रत्नों में से एक आयुर्वेद रूपी अमृत लेकर भगवान धन्वंतरि अवतरित हुए थे, इसी वजह से दिवाली के दो दिन पहले भगवान धन्वंतरि के जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
आज नवें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (धन्वंतरि जयंती ) के अवसर पर हम सभी भारतीय संकल्प ले कि भारतीय जीवन शास्त्र आयुर्वेद को अपने जीवन का आधार बनाकर स्वस्थ- शतायु जीवन की ओर अग्रसर होंगे तथा “स्वस्थ भारत, समृद्ध भारत” की परिकल्पना को साकार करने में अपनी भूमिका अदा करेंगे।
आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य, आयुर्वेद को मुख्यधारा में शामिल करना
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य आयुर्वेद को मुख्यधारा में शामिल करना है। यह दिन आयुर्वेद और उसके अद्वितीय उपचार सिद्धांतों की ताकत पर केंद्रित है। इस दिन का उद्देश्य आयुर्वेद के बारे में जागरूकता पैदा करना और समाज में चिकित्सा के आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना है। यह उत्सव भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली और देश की समग्र स्वास्थ्य देखभाल संस्कृति के एक अनिवार्य हिस्से के रूप में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भगवान धन्वंतरि ने की औषधियों परिचय
भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजाएं हैं. उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किा हुए हैं. जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिए हुए हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है, इसीलिए धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं, इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।
आयुर्वेद की उत्त्पति और इतिहास
ऐसा माना जाता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना से पहले आयुर्वेद की रचना की। प्रजाजन की उत्पत्ति के पश्चात चिकित्सा की आवश्यकता को ध्यान में रखकर पहले ही आयुर्वेद की रचना एक महान घटना है। चरक के कथनानुसार ब्रह्मा से आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति ने प्राप्त किया।
प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने और उनसे इंद्र ने इस ज्ञान को प्राप्त किया। इंद्र से यह ज्ञान धन्वंतरि, भारद्वाज ने और उनसे आत्रेय आदि महर्षिओं ने ग्रहण किया। आत्रेय से यह ज्ञान उनके शिष्यों ने पाया और इस प्रकार से आयुर्वेद जन-जन तक पहुंचा। भगवान् ब्रह्मा के मुख से निर्गत चारों वेदों में से एक अथर्ववेद है- जिसका उपवेद आयुर्वेद है। भगवान धन्वंतरि ने अपने शिष्यों के मध्यम से इस ज्ञान का संहिताकरण किया।
आज भी ये संहिताएं अपने मूल रूप में विद्यमान हैं, उदाहरण के लिए चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता एवं काश्यपसंहिता। बाद में इनको सरल करने के लिए अष्टांगसंग्रह, अष्टांगहृदय, माधवनिदानसंहिता, भावप्रकाश, शाङ्गधरसंहिता आदि अनेक ग्रन्थ रचे गए। अलग-अलग टीकाकारों ने कठिन संस्कृत-शब्दों को सरल-सुबोध बनाने के लिए अपना मत प्रकाशित किया है।
आयुर्वेद लिखने वाले पुरुष को आप्त कहा जाता है, जिनको त्रिकाल (भूत, वर्तमान, भविष्य) का ज्ञान था। यद्यपि आयुर्वेद बहुत पुराने काल में लिखा गया है, तथापि वर्तमान में नए रूप में उभरनेवाली हर बीमारियों का समाधान इसमें समाहित है। आयुर्वेद मतलब जीवनविज्ञान है। अतः यह सिर्फ एक चिकित्सा- पद्धति नहीं है, जीवन से सम्बधित हर समस्या का समाधान इसमें समाहित है।
डॉ पवन सिंह शेखावत
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी
जिला आयुर्वेद चिकित्सालय
बुद्ध विहार, अलवर।
संपर्क-9667851624